मंगलवार, 4 जुलाई 2017

उल्लास

उल्लास....

उल्लास है तेरे प्रेम का,
नए जीवन का,
तुमसे मेरे मिलन का...

उल्लास है मेरे इश्क़ का
तेरे होने का,
मुझमें तुझे जीने का...

उल्लास है जीवन के सार का
अपने प्यार का
एक तेरे एहसास का...

उल्लास है तुझ में उलझ जाने का
भूल खुद को
तुझमें खो जाने का...

ये उल्लास है मुझमें
तेरी गलियों में खो
जाने का,
फिर से दिल के धड़क
जाने का,
मेरे फना हो जाने का,
खुद ही खुद में
तुम्हें सोच कर
मुस्कुराने का....

सौरभ शर्मा
(दिल्ली)

04.07.2017

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

नारी

"नारी"

तुम निर्मल हो पावन हो,
तुम ही सुंदर हो,
तुम ही चंचल हो,
मन से पवित्र,
तन से कोमल तुम
ही तो हो...

ह्रदय में उदारता
तुम रखती हो...
समर्पण भाव
तुम रखती हो...
त्याग करती हो तुम...

जितना तपती हो,
उतना ही निखरती हो
तुम...

सहती हो अन्याय तुम,
फिर भी अग्नि परीक्षा
देती हो तुम...

परम्पराओं में
बांधी गयीं तुम...
अपवित्र भी कही
गयीं तुम...

फिर भी...
सात फेरों में
होती हो तुम...
नौ महीने कोख
में रखती हो तुम...
मंदिर में पूजी जाती हो
तुम...
ठोकर भी खाती हो
तुम...

फिर भी अबला नहीं
तुम...
हक अपना लेना जानती
हो तुम...
संग संग चलना जानती
हो तुम...
टूटना, थकना नहीं
जानती हो तुम....

जननी से लेकर,
संहार तक कर सकती
हो तुम...
ममता देती हो तुम...
नेह देती हो तुम...
ईश्वर की सबसे
बेहतरीन रचना हो तुम...

सौरभ शर्मा

28.04.2017

सोमवार, 27 मार्च 2017

वो पगली लड़की

वो पगली लड़की जाने-अनजाने न जाने क्या क्या कह गयी,
कहती रही वो, सुनता रहा मैं,
लिखती रही वो, पढ़ता रहा मैं,
संवाद का क्रम चलता रहा बस,
और देखता रहा मैं बार बार
बादलों की ओर, की आज ये बादल
बरस जाएँ और इनके साथ बहने दूँ,
मैं आँखे अपनी, पर मैं जो चाहूँ और
मुझे मिल जाए ये फिर न हुआ,
न बरसे बादल और न बहने दिए आँसूं मैंने,
हर शब्द उसका अंतर्मन में मेरे
पैदा कर रहा था एक हलचल सी,
क्यों कहे उसने ये प्यारे से शब्द मुझे,
जानती है वो भी की मैं करता हूँ प्रेम किसी
और से, फिर क्यों बनना चाहती है वो मेरी,
खुद एक सुंदर सी राजकुमारी है वो, फिर मुझ धूल से
क्यों सन जाना चाहती है वो,
एक दोराहे पर आ खड़ा हुआ हूँ मैं,
एक ओर वो मंजिल है जिसे खुद चुना है मैंने
अपने लिए, और दूसरी ओर वो राह जो खुद
जुड़ जाना चाहती है मुझसे,
वो लड़की आज एक उलझी सी पहेली मुझे
बना गई, जिसे सुलझाने में मैं खुद ही जा हूँ
उलझता...

वो पगली लड़की न जाने क्या क्या कह गयी...!

सौरभ शर्मा

27.03.2017

मंगलवार, 21 मार्च 2017

एक खत

चाँद की बालकनी से रोज तुमको निहारता हूँ, जानता हूँ मेरे यहाँ आने के बाद से अब #तुम सुबह का इंतज़ार नहीं करतीं,
बस उठ जाती हो, #तुम्हारे चेहरे की वो चमक, वो लबों की मुस्कुराहट न जाने कहाँ खो गयीं हैं, अक्सर दुनिया के सामने
#तुमको खुश रहने का दिखावा करते देखता हूँ, तो रो पड़ता हूँ
#मैं.....
  
क्या करूँ, कुछ वक्त कम मिला था मुझे साथ #तुम्हारे बिताने को, इस बात का अफ़सोस मुझे भी है, पर कभी भी कुछ न भूलने वालीं #तुम, मुझसे हमेशा मुस्कुराने का वादा कैसे भूल गयीं....

#तुम तो सबको हिम्मत देने वाली लड़की हो, सबको हँसाने वाली, फिर #तुम कैसे ऐसे गुमसुम सी रहने लगी, देखो वो बाग़ जहाँ #तुम मुझसे मिला करती थीं, #तुम्हारे वहाँ न जाने से वीरान सा लग रहा है, जाओ फिर से बहारों में लौट जाओ....

#तुम्हारी डायरी और पेन अब #तुम्हारे साथ नहीं होते, साथ मैं न दे पाया, पर उनसे कैसी नाराजगी, सुनो उन्हें फिर से अपना लो, खूब अच्छा अच्छा लिखो, मुझे भी ख़ुशी मिलेगी....

सुनो, मैं वापस आऊँगा एक नए रूप में नया जन्म लेकर, फिर वही #इश्क़ लेकर #तुम्हारे पास, ये सब पढ़ कर #तुम सोचगी की तब तक तो #तुम बुड्ढी हो जायेगी, कोई बात नहीं #तुम और #मैं बुड्ढे हो सकते हैं, पर #हमारा #इश्क़ और #दिल हमेशा #जवां रहेगा......

यहाँ #तुम्हारी बहुत याद आती है #सखी...!

सौरभ

शुक्रवार, 17 मार्च 2017

मैं

तुम, शब्द, बातें, एहसास, अर्थ, मुलाक़ात, इश्क़ सब लापता हैं...

दर्द बाकी, इंतज़ार के साथ, गहराती रात का थामे हाथ,
और इन सबके बीच मैं कहाँ हूँ?

मैं धीरे धीरे शांत होता जा रहा हूँ, एक कभी न खुलने वाली नींद सोता जा रहा हूँ,
तेरे लौटते कदमों की आहट और मेरा विलुप्त हो जाना, हम दोनों के लिए कौतूहल रहेगा....!

सौरभ शर्मा

17.03.2017

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

उदासी

जब तुम पढ़ रही होगी खत मेरा....
तब तक जल चुका होऊँगा मैं,
तुम रोना नहीं जानती...
पर अपनी आँख का पानी रोक न
पाओगी तुम,
इसलिए तुमको बताया नहीं मैंने,
कब तक अपने ज़ख्म को अपने
दर्द को तुमसे छुपाता मैं,
तुम जान ही जातीं तो उदास
हो जातीं, पर तुमको उदास और
रोता मैं नहीं देख पाता,
इसलिए चुपचाप चला गया, जानता
हूँ तुमको को धोखा दिया साथ निभाने का
वादा कर तुमसे, बिच राह इस दुनिया में
अकेला छोड़ गया तुमको.…
पर क्या करता बस 4 दिन ही मिले थे मुझे,
पर चाँद के ऊपर जो वो सबसे चमकता तारा है
न वो अब मेरा नया घर है, बस वहीँ से तुमको
निहारा करूँगा,
कभी अपने को अकेला महसूस मत करना मैं
ठीक तुम्हारे सामने ही रहूँगा, बस दिन में ही न
मिल पाऊंगा, और हाँ अपनी खिड़की हमेशा खुली
रखना जिससे तुम्हें सोते हुए मैं तुमको देखा करूँ,
मैं जानता हूँ, तुम नींद में मुस्कुराती बहुत अच्छी लगती हो, चलो अपना ख्याल रखना सखी....!

सौरभ शर्मा

सोमवार, 6 फ़रवरी 2017

खुद

लिखना चाहता हूँ खुद को...
पर खुद से ही अंजान हूँ मैं,
एक भूली-बिसरी खुद की दास्ताँ हूँ मैं...
सोचता हूँ खुद को कहाँ से शुरू करूँ,
हकीकत नहीं, खुद की एक कल्पना मात्र हूँ मैं..
जो ख्यालों में तो है पर सच में नहीं,
मैं कौन हूँ फिर, क्या हूँ और क्यों हूँ...
मेरा वजूद क्या है, मैं मिट्टी से बना
मात्र एक पुतला हूँ, जिसे फिर मिट्टी में
ही मिल जाना है,
मैं आग हूँ कोई जिसे
जल कर राख हो जाना है,
मैं बून्द हूँ कोई जिसे फिर
मिल जाना है जाकर सागर में,
या हूँ मैं हवा का झोंका कोई
जो यूँ ही बहता रहता है, आंधी के साथ..
कई बार मैं खुद पाता हूँ गलियों में इश्क़ की,
हाथ थामे "सखी" का अपनी...
कई बार उलझा पाता हूँ खुद को जुल्फ में
उसकी, मेरे ख्वाबों-ख्यालों की दुनिया में
वही तो बसती है, मेरे दिल-ओ-दिमाग
पर छाया रहता है इश्क़ उसका....
ये तिलिस्म है उस सखी का की खुद
को भूल बैठा हूँ मैं...
बस एक इश्क़ उससे करते करते...!

सौरभ