चाँद की बालकनी से रोज तुमको निहारता हूँ, जानता हूँ मेरे यहाँ आने के बाद से अब #तुम सुबह का इंतज़ार नहीं करतीं,
बस उठ जाती हो, #तुम्हारे चेहरे की वो चमक, वो लबों की मुस्कुराहट न जाने कहाँ खो गयीं हैं, अक्सर दुनिया के सामने
#तुमको खुश रहने का दिखावा करते देखता हूँ, तो रो पड़ता हूँ
#मैं.....
क्या करूँ, कुछ वक्त कम मिला था मुझे साथ #तुम्हारे बिताने को, इस बात का अफ़सोस मुझे भी है, पर कभी भी कुछ न भूलने वालीं #तुम, मुझसे हमेशा मुस्कुराने का वादा कैसे भूल गयीं....
#तुम तो सबको हिम्मत देने वाली लड़की हो, सबको हँसाने वाली, फिर #तुम कैसे ऐसे गुमसुम सी रहने लगी, देखो वो बाग़ जहाँ #तुम मुझसे मिला करती थीं, #तुम्हारे वहाँ न जाने से वीरान सा लग रहा है, जाओ फिर से बहारों में लौट जाओ....
#तुम्हारी डायरी और पेन अब #तुम्हारे साथ नहीं होते, साथ मैं न दे पाया, पर उनसे कैसी नाराजगी, सुनो उन्हें फिर से अपना लो, खूब अच्छा अच्छा लिखो, मुझे भी ख़ुशी मिलेगी....
सुनो, मैं वापस आऊँगा एक नए रूप में नया जन्म लेकर, फिर वही #इश्क़ लेकर #तुम्हारे पास, ये सब पढ़ कर #तुम सोचगी की तब तक तो #तुम बुड्ढी हो जायेगी, कोई बात नहीं #तुम और #मैं बुड्ढे हो सकते हैं, पर #हमारा #इश्क़ और #दिल हमेशा #जवां रहेगा......
यहाँ #तुम्हारी बहुत याद आती है #सखी...!
सौरभ